Friday, 2 September 2011

स्मृति शेष /Remembrance....

जाने चले जाते हैं कहाँ,

दुनिया से जानेवाले, 
जाने चले जाते हैं कहाँ,
कैसे ढूंढे कोई उनको, 
नहीं कदमों के भी निशां

आएं जब-जब उनकी यादें,
आएं होठों पे फ़रियादें,
जाके फिर न आने वाले
जाने चले जाते हैं कहाँ ...

दुनिया से जानेवाले, जाने चले जाते हैं कहाँ,
कैसे ढूंढे कोई उनको, नहीं कदमों के भी निशां
जाने चले जाते हैं कहाँ ...


आज जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो पापा का हमें छोड़ कर चले जाना कल कीही सी बात लगती हैं। जीवन के आखरी दिनों में उनका बीमारी से संघर्षऔर जीवन के प्रति उनकी चाह अद्भुत रही जैसे वे उस जंग को जीतना चाहते थे लेकिन उनकी सांस संबंधी बीमारी ने उनकी सांसों को और अधिक नहीं चलने दिया।

वे एक ऐसे व्यक्तित्व और अध्यात्मिक पुरुष रहे जिन्हें शिष्य आदर्श गुरु, दोस्त आदर्श मित्र और हम आदर्श पिता के रूप में देखते थे।

यादों का सफर बचपन से शुरू होता है जब वे बागला सीनियर स्कूल में कॉमर्स के व्याख्याता रहे। बे बैडमिंटन और टेनिस खेलने के शौकीन थे। इसके साथ ही संगीत में  गायन  व वादन पर समान अधिकार था उनका ।उनके साथ सुबह-सुबह इस खुशी में मनोरंजन क्लब के लिए दौड़ लेते थे कि पुरानी टेनिस बाल मिलेगी। अलग –अलग जगहों पर ट्रांसफर होने के कारण राजस्थान के सभी रंगों को देखने और जीने का अवसर मिला हमें इसी वजह से मुझ में विविधता भरा इंसान समा गया।

ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो मकर लग्न, उच्च के वृहस्पति की केन्द्रीय स्थिति और कर्म भाव में मंगल के होने से वे प्रिंसिपल हुए। तब कुशल प्रशासक, अनुशासन प्रिय और सम्मोहक व्यक्तित्व वाले रहे। अपनी कल्पनाशीलता और नवसृजन की प्रवृति के चलते कई अच्छे प्रयोग किए अध्यापन के क्षेत्र में। धर्म के घर में केतु की उपस्थिति ने उन्हें अपने जीवन के अंतिम दो दशक में अध्यात्म की गहराईयों में उतार दिया। जिससे वे हमारे लिए प्रेरणास्रोत बन गए।मेरी कुंडली में पिता के स्वामी सूर्य कि स्थिति मित्र भाव में होने से उन्हें हमेशा इसी रूप में पाया याद नहीं आता पूरे जीवन काल में उन्होंने गुस्से से कभी हाथ उठाया हो ।उन्हें बीमारी के दौरान के संघर्ष के अंतिम दिनों में आभास हो गया था कि अब समय करीब आ गया चलने का और कहते कि अगले माह सितंबर में आने वाले जन्म दिन को ही रवानगी हो जाए। 

एक माह पहले ही वह संघर्ष थम गया जिसके लिए हम मानसिक रूप से बिलकुल तैयार नहीं थे। जैसे सारी बातें, सारे सवाल, कहना सुनना सब अधूरा रह गया ! यह सब आप के साथ बांटने का प्रयोजन उस यथार्थ से रूबरू करना था कि जीवन के आखिरी पड़ाव में पेरेंट्स को हमारी बहुत जरूरत होती है और उनके साथ जिया हर पल यादगार बन जाता है और उनके जाने के बाद जो कुछ अधूरा रह गया होता है लाख जतन के बाद भी समय के न लौट आने से अधूरा ही रहता है।

साथ ही आज फेसबुक के 2 वर्ष का सफर भी पूरा हो रहा है। आत्मचिंतन की प्रक्रिया से गुजरने के बाद यह विश्वास दृढ़ हुआ है कि आप उन्हीं के दोस्त हो सकते हैं जो आपको अपना दोस्त मानते हैं। इसलिए यहाँ अपनी सीमित और सार्थक उपस्थिति ही हितकर है वर्ना खोने को बहुत कुछ है!
ये पूरा वर्ष इन्हीं सवालात के जवाब ढूंढने में यह सिखा गया कि जो जैसे होना था वैसे ही हुआ। उनका आदर्श व्यक्तित्व अनवरत प्रेरित करता रहेगा और देता रहेगा जवाब हर अधूरी रह गई बातों, अभिलाषाओं का...!

                                                       Remembrance...


                                                    where do they go,
after leaving this world,
where do they go,
how to find them,
find no foot prints .
when come their memories.
wishes come to lips,
why they don’t come 

after goingwhere they go … 


Looking back, it seems as just happened few days back when Papa left us.During last days of illness his struggle for respiratory disease and desire for life was amazing. He wanted to win this fight but his disease couldn't permit breath further.


He was and spiritual person with such a personality that students found him as an ideal Teacher, friend as an ideal friend n we as an ideal Father.


This journey of memories start from childhood when Daddy wasa Lecturer in Commerce at Bagla Senior School Churu. He was a good player of Badminton and Tennis and having good command in vocal n instrumental music. We used to run early morning with him to Manoranjan Club with the hope for getting old Tennis ball. We got the opportunity too see various colours of Rajasthani culture owing which I found a person with verities in myself.


From Astrological vision, with Capricorn Ascendent, central effect of Exhaulted Jupiter n Mars in house of job made him Principal and he proved himself a good Administrator, man of descipline n owner of attractive personality. He has made good experiments in the field of teaching due to his imagination and skills of new - creation. Ketu in house of religion has given him higher depth of spirituality by which he became the source of inspiration for us. Due to placement of Sun in my chart in friends house I found him ever as friend n merely recall if ever he has raised hand to beat. During the last days of struggle with disease he has intituted the time of leaving this world and used to say that he will leave on the forthcoming birthday in the month of September.


This struggle was stopped one month earlier for which we were not mentally prepared. It seemed as all talks, all questions n things remained incomplete. Purpose of sharing these all with you is to introduce the fact that during last destination of life's journey, parents need us and moments lived with them became memorable for ever. After leaving anything left incomplete remains incomplete inspite of millions of efforts due to non return of past.


Alongwith this, the my Facebook journey is touching milestone of 2 yrs. Going through innerself this faith became more stronger that you can be friend of only those one who find you as friend of his/her. Thus, here limited n useful presence is only benificiary otherwise you have lots of to loose. This whole year passed with finding answers of these questions and taught that what happened was well decided.His ideal personality continuously inspire and reply the incomplete questions,things n desires...!

                                                         - डॉ. सतीश शर्मा 












Thursday, 18 August 2011

मेरी पहली प्रकाशित रचना ।



बात उन दिनों की है जब मैं निम्बहेडा (चितौड) में पदस्थापित था। अस्सी के दशक का उतरार्ध रहा होगा। वहां हर वर्ष दशहरे के अवसर पर कवि सम्मेलन, मुशायरे होते। उस दौरान देश के ख्यातनाम कवियों और शायरों से मुखातिब होने के कई मौके मिले। कहीं अंदर छुपे कवि ने बाहर निकलने का प्रयास किया था लेकिन जो बाद में एक श्रोता, पाठक या प्रशंसक में तब्दील हो गया। शायद यह तब्दीली किसी और मंजिल की तरफ बढ़ने का इशारा कार रही थी। यहां प्रस्तुत है मेरी प्रथम प्रकाशित रचना।

                वो खफ़ा नहीं होता                

दर्द तूने सुना नहीं होता 
गीत मैंने बुना नहीं होता 
चार पल का सुकूं जो मिल जाता 
                                         ज़िंदगी से गिला नहीं होता
प्यार से देखते न जो मुझको 
दर्द का ये सिला नहीं होता 
ज़िंदगी मुझ को ढूंढती फिरती
जो मेरा नक्शेपा नहीं होता
  आपका दर्द हमने जान लिया 
दर्द भी बेजुबां नहीं होता 
ये तस्व्वुर का जाम है यारो
हर किसी को अता नहीं होता
वक्त की अपनी उम्र है हमदम 
वो कोई बुलबुला नहीं होता 
वक्त किस को नवाज़ दे यारो
इसका कोई पता नहीं होता 
बात हमराज की कहूँ तुमसे 
आजकल वो खफ़ा नहीं होता।

- सतीश 'हमराज'

Saturday, 13 August 2011

मेरी बहना सदा सुखी रहना......



आज आपसे पहली बार रू-ब-रू हो रहा हूँ। 

सर्वप्रथम आप सबको राखी पूर्णिमा और रक्षा बंधन की असंख्य 
शुभ कामनाएं। 


यह त्योहार आप सबके जीवन में खुशियों की बौछार करे। 
आपसी रिश्ते और भी मजबूत हों।


***