Thursday 18 August 2011

मेरी पहली प्रकाशित रचना ।



बात उन दिनों की है जब मैं निम्बहेडा (चितौड) में पदस्थापित था। अस्सी के दशक का उतरार्ध रहा होगा। वहां हर वर्ष दशहरे के अवसर पर कवि सम्मेलन, मुशायरे होते। उस दौरान देश के ख्यातनाम कवियों और शायरों से मुखातिब होने के कई मौके मिले। कहीं अंदर छुपे कवि ने बाहर निकलने का प्रयास किया था लेकिन जो बाद में एक श्रोता, पाठक या प्रशंसक में तब्दील हो गया। शायद यह तब्दीली किसी और मंजिल की तरफ बढ़ने का इशारा कार रही थी। यहां प्रस्तुत है मेरी प्रथम प्रकाशित रचना।

                वो खफ़ा नहीं होता                

दर्द तूने सुना नहीं होता 
गीत मैंने बुना नहीं होता 
चार पल का सुकूं जो मिल जाता 
                                         ज़िंदगी से गिला नहीं होता
प्यार से देखते न जो मुझको 
दर्द का ये सिला नहीं होता 
ज़िंदगी मुझ को ढूंढती फिरती
जो मेरा नक्शेपा नहीं होता
  आपका दर्द हमने जान लिया 
दर्द भी बेजुबां नहीं होता 
ये तस्व्वुर का जाम है यारो
हर किसी को अता नहीं होता
वक्त की अपनी उम्र है हमदम 
वो कोई बुलबुला नहीं होता 
वक्त किस को नवाज़ दे यारो
इसका कोई पता नहीं होता 
बात हमराज की कहूँ तुमसे 
आजकल वो खफ़ा नहीं होता।

- सतीश 'हमराज'

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